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भ्रष्टाचार का हमाम और वोट की ताक़त!

प्रेम रस - जागरण जंकशन
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बाबु सिंह कुशवाहा का नाम लेकर शोर मचाने वाले दलों में सबसे आगे रहने वाली कांग्रेस का दामन भी भ्रष्टाचार में अन्य पार्टियों की तरह ही मैला है। एक ओर तो कांग्रेसी युवराज राहुल गाँधी सीना ठोककर बता रहे हैं कि कैसे उनकी पार्टी ने बाबु सिंह कुशवाहा को उनके भ्रष्टाचार में लिप्तता के चलते पार्टी में शामिल नहीं किया और दूसरी और उनकी ही पार्टी के 215 उमीदवारों में से जिन 75 उमीदवारों अब तक हलफनामा भरा है उसमें से 26 उमीदवार दागी पाए गए हैं। यहाँ तक कि इन 26 में से 13 उमीदवारों पर गंभीर प्रवत्ति के अपराधिक मामले दर्ज हैं।

कमोबेश यही हाल हर एक राजनैतिक दल का है। भारतीय जनता पार्टी के 220 में अभी केवल 91 उम्मीदवारों ने ही हलफनामे दिए हैं और उनमे से भी 26 उम्मीदवार दागी हैं अर्थात यहाँ भी मुकाबला बराबरी का ही है। वैसे यह तो एक बानगी भर है, क्योंकि अभी केवल कुछ ही उम्मीदवारों ने हलफनामे दायर किये हैं।

लोकपाल बिल और भ्रष्टाचार मिटाने के नाम पर बड़ी-बड़ी बातें करने वाले राजनैतिक दलों का चाल-चरित्र और चेहरा बड़ी आसानी से चुनावों के समय देखा-पढ़ा जा सकता है। लेकिन यह सब सुनने, देखने, पढने की फुर्सत हमें अर्थात आम जनता को है ही कहाँ? जब भी बात वोट डालने की आती है तो केवल यह ही देखा जाता है कि उसकी पसंद की पार्टी कौनसी है? अथवा उसकी जाती, धर्म, समुदाय से कौन खड़ा हुआ है? जब तक जनता अपनी सोच नहीं बदलेगी राजनैतिक दल भी नहीं बदलेंगे, मतलब भ्रष्टाचार की बयार यूँ ही अविकल बहती रहेगी।
हर एक अगर अपने दिल पर हाथ रख कर विचार करे कि क्या कभी उसने पार्टी, ज़ात-पात, धर्म-समुदाय से ऊपर उठकर केवल और केवल ईमानदार और कर्मठ व्यक्ति को वोट दिया है? तो उत्तर ना में ही आएगा। हममे से (तक़रीबन) हर एक व्यक्ति इन तथाकथित पार्टी, धर्म, ज़ात-पात के ठेकेदारों की लुभावनी, लच्छेदार बातों पर ही वोट डालता आ रहा है।
कुछ लोग कहते है कि फिर किसे वोट दें? एक ओर नागनाथ है और दूसरी ओर सांपनाथ! जबकि हकीक़त में ऐसा नहीं है, अगर उम्मीदवारों की पूरी सूचि पर नज़र डाली जाए तो उनमे से कोई ना कोई उम्मीदवार ईमानदार और कर्मठ अवश्य मिलेगा। लेकिन सच्चाई यह है कि वोट डालना तो छोड़ ही दीजिये, उम्मीदवारों की पूरी लिस्ट को पढ़ा तक नहीं जाता है। और ज़मीनी हकीक़त यह है कि सच्चे, ईमानदार और कर्मठ लोगो को स्वयं उसके घरवाले भी वोट नहीं डालते हैं। यही कारण है कि ईमानदार और देश के लिए कुछ करने का जज्बा रखने वाले लोग राजनीती से दूर भागते हैं। क्या बिना इस हकीक़त को बदले समाज और देश को बदला जा सकता है?
हमें इस बात को समझना होगा कि हमारे हाथ में ‘वोट’ नामक सशक्त हथियार है और इसी कारण लोकतंत्र हमारे देश की सबसे बड़ी ताक़त है। परेशानी का सबब यह बात है कि  राजनेताओं ने अपनी भावुक बातों में फंसा कर देश की जनता के इस हथियार की धार को कुंद किया हुआ है। आज लोकपाल जैसे हथियारों से भी अधिक आवश्यकता ज़मीन पर उतरकर जनता को वोट के हक की ताक़त का अहसास कराने की है। देश की तकदीर राजनेता नहीं बल्कि यह वोट की ताक़त ही बदल सकती है। 
http://premras.com/2012/01/corruption-voting-power.html

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